Emergency movie review: इतिहास की झलक या नाटकीय कल्पना?

Emergency movie review in hindi (इमर्जेंसी)

“एक फैसला… और पूरा देश सन्न रह गया!”

25 जून 1975 की आधी रात, जब पूरा भारत गहरी नींद में था, तब सत्ता के गलियारों में एक ऐसा फरमान जारी हुआ जिसने लोकतंत्र की धड़कन रोक दी। अखबारों की सुर्खियां दबा दी गईं, नेताओं को जेल में डाल दिया गया, और जनता की आवाज़ को चुप करा दिया गया। इसी काले अध्याय को पर्दे पर उतारने के लिए कंगना रनौत ‘इमरजेंसी’ (Emergency) लेकर आई हैं।

इस फिल्म में न सिर्फ कंगना ने इंदिरा गांधी की भूमिका निभाई है, बल्कि इसे निर्देशित और निर्मित भी किया है। सवाल यह उठता है कि क्या यह फिल्म इतिहास की सच्चाई को दिखाती है या फिर सिर्फ एक नाटकीय कल्पना है? क्या यह हमें उस दौर की भयावहता का एहसास कराती है, या फिर यह सिर्फ राजनीतिक एजेंडा है? आइए जानते हैं ‘इमरजेंसी’ का पूरा सच इस रिव्यू में!

Emergency Movie Review

Emergency की कहानी:

फिल्म की कहानी 25 जून 1975 को भारत में लागू किए गए आपातकाल के इर्द-गिर्द घूमती है। यह उन परिस्थितियों को दर्शाती है, जिन्होंने इंदिरा गांधी को इस कठोर निर्णय तक पहुंचने के लिए मजबूर किया। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंदिरा गांधी के चुनाव को अवैध घोषित किए जाने के बाद उनके खिलाफ देशभर में विरोध प्रदर्शन तेज हो गए थे। विपक्ष लगातार उनके इस्तीफे की मांग कर रहा था, लेकिन उन्होंने सत्ता में बने रहने के लिए आपातकाल लागू करने का निर्णय लिया।

आपातकाल के दौरान नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाया गया, प्रेस पर सेंसरशिप थोप दी गई, और विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। संजय गांधी के नेतृत्व में नसबंदी अभियान चलाया गया, जिसने आम जनता में भय और असंतोष को जन्म दिया। फिल्म के दूसरे भाग में जनता के बढ़ते असंतोष, विपक्षी नेताओं के संघर्ष और अंततः 1977 में इंदिरा गांधी की चुनावी हार को दिखाया गया है।

Emergency movie images, (Emergency movie) , इमर्जेंसी

अभिनय और निर्देशन:

कंगना रनौत ने इंदिरा गांधी के किरदार को पूरी शिद्दत से निभाया है। उनकी बॉडी लैंग्वेज, हाव-भाव और डायलॉग डिलेवरी प्रभावशाली है। उनकी आवाज़ में नाक का विशिष्ट स्वर इंदिरा गांधी की शैली की याद दिलाता है। हालांकि, कुछ दृश्यों में उनका अभिनय थोड़ा नाटकीय लगता है, जिससे किरदार का स्वाभाविक प्रभाव कम हो जाता है।

अनुपम खेर ने जयप्रकाश नारायण की भूमिका निभाई है और उनका अभिनय प्रभावशाली है। वह एक अनुभवी अभिनेता हैं और उन्होंने जयप्रकाश नारायण के करिश्मे को पर्दे पर बखूबी उतारा है। श्रेयस तलपड़े अटल बिहारी वाजपेयी के किरदार में नजर आए, हालांकि उनकी भूमिका सीमित थी। महिमा चौधरी ने इंदिरा गांधी की करीबी मित्र पुपुल जयकर की भूमिका निभाई है, और उनका प्रदर्शन भी दमदार रहा।

निर्देशन की बात करें तो कंगना रनौत ने 1970 के दशक के राजनीतिक माहौल को जीवंत करने में अच्छा काम किया है। सिनेमाटोग्राफी शानदार है और फिल्म का सेट डिज़ाइन उस दौर की सटीक झलक देता है। हालांकि, फिल्म की गति कुछ स्थानों पर धीमी हो जाती है, जिससे कुछ दृश्यों में कहानी बिखरती हुई महसूस होती है।

संगीत और बैकग्राउंड स्कोर:

फिल्म का संगीत जी. वी. प्रकाश कुमार ने दिया है, लेकिन गाने फिल्म की मुख्य ताकत नहीं हैं। हां, बैकग्राउंड स्कोर दमदार है और कहानी के प्रभाव को बढ़ाने में सफल रहा है। कई जगहों पर बैकग्राउंड स्कोर ही दृश्यों में गहराई और संजीदगी जोड़ता है।

विवाद और सेंसरशिप:

फिल्म के विवादों ने इसकी रिलीज़ से पहले ही सुर्खियां बटोरी थीं। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (SGPC) और अकाल तख्त ने आरोप लगाया कि फिल्म में सिख समुदाय का गलत चित्रण किया गया है। उन्होंने सेंसर बोर्ड से इस पर रोक लगाने की मांग की। सेंसर बोर्ड ने फिल्म में कुछ दृश्यों को हटाने का सुझाव दिया, जिसे कंगना ने ‘अनुचित हस्तक्षेप’ करार दिया। मामला बॉम्बे हाई कोर्ट तक पहुंचा, जहां अदालत ने कहा कि फिल्म निर्माताओं की रचनात्मक स्वतंत्रता का सम्मान किया जाना चाहिए।

राजनीतिक गलियारों में भी यह फिल्म चर्चा का विषय बनी रही। कुछ नेताओं ने इसे एक ‘प्रचार माध्यम’ बताया, तो कुछ ने इसे भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना पर बनी ‘साहसी फिल्म’ कहा।

फिल्म की कमजोरियां:

हालांकि फिल्म की विषयवस्तु दमदार है, लेकिन कुछ पहलू ऐसे हैं जो इसे और बेहतर बना सकते थे। पटकथा में कहीं-कहीं निष्पक्षता की कमी नजर आती है। इंदिरा गांधी के किरदार को कई स्थानों पर अत्यधिक नकारात्मक रूप में दिखाया गया है, जिससे यह एक संतुलित बायोपिक की बजाय एक एकतरफा कहानी लगने लगती है।

फिल्म की लंबाई थोड़ी अधिक है, जिससे कहानी कुछ जगहों पर खिंची हुई लगती है। दूसरा हाफ पहले हाफ की तुलना में कमजोर महसूस होता है, खासकर जब जनता के विरोध प्रदर्शनों और 1977 के चुनावों को दिखाया जाता है।

निष्कर्ष:

‘इमरजेंसी’ (Emergency) एक साहसिक प्रयास है, जो भारतीय इतिहास के एक महत्वपूर्ण अध्याय को बड़े पर्दे पर लाने की कोशिश करता है। कंगना रनौत का अभिनय और निर्देशन फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है। हालांकि, फिल्म पूरी तरह निष्पक्ष नहीं लगती और कुछ जगहों पर इसकी नाटकीयता अधिक महसूस होती है।

अगर आप राजनीति, इतिहास और बायोपिक में रुचि रखते हैं, तो यह फिल्म आपको पसंद आ सकती है। लेकिन अगर आप पूरी तरह निष्पक्ष ऐतिहासिक प्रस्तुति की उम्मीद कर रहे हैं, तो शायद यह फिल्म आपको संतोषजनक न लगे।

रेटिंग: 3.5/5

क्या आपने ‘इमरजेंसी’ देखी? आपको यह फिल्म कैसी लगी? कमेंट में हमें बताएं!

Similar Posts

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *